गीत(तुम्हीं सुरभि)
गीत(तुम्हीं सुरभि)
तुम्हीं सुरभि मेरे जीवन की,
बगिया को महकाते हो।
जब-जब संकट पड़ता मुझपे,
माली बनकर आते हो।।
चाहे रहे वसंत- शीत ऋतु,
चाहे गर्मी-बरसातें।
हर मौसम में तुम ही आकर,
करते रहते हो बातें।
जैसे अलि फूलों पे रहते,
वैसे तुम मडराते हो।।
बगिया को महकाते हो।।
खिले हुए सब फूल चमन के,
तेरी याद दिलाते हैं।
कलियाँ आकर मुझसे कहतीं,
साजन तुम्हें बुलाते हैं।
इधर-उधर मैं तुम्हें खोजती,
तुम तो नहीं दिखाते हो।।
बगिया को महकाते हो।।
बादल में तुमको ही देखूँ,
देखूँ चाँद-सितारों में।
तुम्हीं प्रकट हो रवि-आभा में,
चंचल सरिता-धारों में।
वन-पर्वत-माला में बस कर,
रोज मुझे ललचाते हो।।
बगिया को महकाते हो।।
रह लो जहाँ-जहाँ जी चाहे,
नहीं भुला तुमको पाऊँ।
तुम्हें छोड़कर मेरे प्रियतम,
अब कौन ठौर मैं जाऊँ??
महँका करो सदा तुम ऐसे,
यदि ऐसे सुख पाते हो।।
बगिया को महकाते हो।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
ऋषभ दिव्येन्द्र
25-Apr-2023 09:27 PM
बहुत सुन्दर
Reply
अदिति झा
25-Apr-2023 04:45 PM
Nice 👍🏼
Reply
राजीव भारती
25-Apr-2023 01:40 PM
जी उत्कृष्ट सृजन।
Reply